महाकवि विद्यापति और भगवान् शिव की अनोखी कहानी
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भीष्म सा था अडिग मन और थी विलक्ष्षण कुश मति शिव के प्रिय विद्या के सागर शत शत नमन विद्यापति। आईये जानते हैं एक ऐसे महान विभूति के विषय में जिसने अपनी विद्या और भक्ति से स्वयं भगवान् शिव को धरती पर अवतरित होने को विवश कर दिया। भारत की अद्भुत संस्कृति की एक महान दिव्य ज्योति जिसने यहाँ की भाषा और संस्कृति को प्रगाढ़ करने में एक अतुल्य योगदान दिया, मिथिला की पावन धरती पर जन्मे "महाकवि विद्यापति " जिनका जन्म एक ब्राह्मण परिवार में बिहार के मधुबनी जिला के बिस्फी नामक छोटे से ग्राम में सन १३५२ ईस्वी में हुआ। शैव ब्राह्मण परिवार में जन्मे विद्यापति बचपन से ही कुशाग्र बुध्दि के धनी थे। वेद उपनिषद् और ग्रंथों में सदैव रमे रहते थे , इसी क्रम में भगवान् शिव में उनकी गहरी रूचि होने लगी। पारिवारिक विरासत को सम्हालते हुए जीविकोपार्जन के लिए वैदिक कर्मकांडी पंडित बन गए, पर उनकी असली रूचि तो कविता लेखन में थी , दिन भर वे शिव की भक्ति में लगे रहते थे। अपने ज्ञान और अदम्य लेखन प्रतिभा के कारण उन्होंने कई महान कीर्तियों की रचना की जिसमे कीर्त...